Ek Reet – Poetry By Ritu Agarwal

एक रीत ….

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रंगीन फीतों से सज गयीं नन्हीं नन्हीं गुथी चोटियाँ..
माथे चमकी बिंदिया, हाथों खनकी चूड़ियाँ..
पैरों में छम-छम,
और गालों पर खुशी की लाली चमक रही है..
आज ये उड़ती छोटी चूनर,
खिड़की में किसकी बाट जोह रही है..??

आज लगा है मेला..
बाबुल आ कर दिखलायेगा..
कान्धों पे अपने बैठा के,
दुनिया के नये रंग दिखायेगा..

बाबुल आया..
मेला भी दिखलाया..

फिर शाम ढ़लते ये ख़याल आया..
कि मेले से दिलवाकर ये छोटा गुड्डा,
इसे मेरा दूल्हा क्यों बतलाया..

ये मेला, गुड्डा़.. तरक़ीब थी मुझे बहलाने की..
या साज़िश थी,
एक रीत मुझे समझाने की..
एक रीत मुझे समझाने की.. !!

 

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Are oh Baadal – Poetry By Ritu Agarwal

अरे ओ बादल ….

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कई दिनों से देख रही हूँ..
तुमनें अपना रुख़ कुछ बदल सा लिया है ..
इस तरफ आते तो हो,
पर मिलकर नहीं जाते ..
सामने से ऐसे निकल जाते हो,
जैसे हमसे कोई वास्ता ही नहीं ..

लगता है .. अब कोई और तुम्हें ज्यादा शिद्दत से बुलाता है ..
तभी तो.. अब यहाँ रुकते नहीं ..
दो पल के लिए ही सही,
अपने प्यार से मुझे भिगाते नहीं

जानती हूँ .. बहुत व्यस्त हो, मुसाफिर हो..
पूरे देश दुनिया का भ्रमण तुम्हें करना है ..
और तुम्हारे चाहने वालों की भी तो कमी नहीं ..
पर अगर, थोड़ा यहाँ भी रुक जाते,
मुझको भी गले लगा जाते,
तो अच्छा लगता ..

कभी लगता है,
तुम्हारी नियत पर, तुम्हारे प्यार पर,
शक़ ना करूँ ..

अगर तुम यूँ जा रहे हो,
तो ज़रूर.. कुछ ज़रूरी होगा..
कोई अपने ग़म को, अपनी ख़ुशी को,
तुमसे बाँटना चाहता होगा..
या फिर..
कोई अपने आँसुओं को,
तो कोई अपने बदन से लिपटी मिट्टी को,
तुमसे लिपट कर, धो देना चाहता होगा..

चलो कोई नहीं ..
इंतज़ार कर रही हूँ..
कभी तो फिर से आओगे..

अरे ओ बादल ..

आज सामने से निकल गये तो क्या
शायद कल रुक जाओगे..

अरे ओ बादल..
मुझे पूरी उम्मीद है,
तुम कल फिर से आओगे..

 

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Keh do – Poetry By Ritu Agarwal

कह दो जो दिल में रखे बैठे हो..

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कह दो जो दिल में रखे बैठे हो..
कुछ यादों को, कुछ एतराज़ों को..
कुछ गुस्से को, कुछ प्यार को, तो कुछ अनकहे एहसास को..
क्यूँ दबाये बैठे हो..
अब कह भी दो, जो दिल में रखे बैठे हो..

ये जिंदगी कुछ ऐसी ही है साहिब..
बहुत निकल गयी, कुछ और निकल जायेगी..

अभी भी वक़्त है..
ये जो दूसरा मौका दे रही है,
इसे हाथ से अब ना जाने दो..
कह दो..निकाल दो..
वो सब दुख-पीड़ा, गिले-शिकवे,
जो अरसों से दिल में दफ़्न करके उसे कब्रिस्तान सा बना बैठे हो..

और खोल दो..
कोने में रखा वो प्यार का पिटारा..
फिर देखो कैसे गुलशन हो जायेगा,
ये कब्रिस्तान तुम्हारा..

 

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Munderr – Poetry By Ritu Agarwal

कभी जब आये, वो तुम्हारी मुंडेर पर..

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कभी जब आये, वो तुम्हारी मुंडेर पर..
बस दूर से ही प्यार दिखाना
ना पिंजरा लगाना,
ना कोई जाल बिछाना
तुम बस.. दूर से ही प्यार दिखाना..

धीरे धीरे जब वो भी तुम्हारे प्यार को महसूस करेगी
तब.. थोड़ा आगे बढ़ेगी
डर कर कभी,
पीछे भी हटेगी..

उस वक्त तुम कोई जल्दबाज़ी मत दिखाना
उसे छूने के लिए हाथ तो बिल्कुल मत बढ़ाना..
तुम बस..दूर से ही प्यार दिखाना

ग़ौर से देखना कभी…. उसकी आँखों को
वो भी एक टक तुमको देख रही होगी..
पास आना चाहती होगी
पर थोड़ा डर रही होगी..

डर..
बीती बातों का
बीती यादों का
जब वो कहीं फँसी होगी
हाँ.. शायद करके यकीन किसी के प्यार पर
वो किसी पिंजरे किसी जाल में फँसी होगी

फिर करके हिम्मत,
वहाँ से उड़ कर बची होगी..
शायद..किसी पिंजरे किसी जाल में कभी फँसी होगी

ऐसे में तुम थोड़ा सब्र रखना
अपने प्यार पर अभिमान,
और उसके डर पर रोष ना करना..

अगर अब तलक, वो तुम्हारी मुंडेर पर बैठी है..
तो ये जान लो..
कि चाहत तो उसे भी है
बस.. पंखों के नीचे छुपे कुछ घावों को
वो सीने से लगा बैठी है..

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