Munderr – Poetry By Ritu Agarwal

कभी जब आये, वो तुम्हारी मुंडेर पर..

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कभी जब आये, वो तुम्हारी मुंडेर पर..
बस दूर से ही प्यार दिखाना
ना पिंजरा लगाना,
ना कोई जाल बिछाना
तुम बस.. दूर से ही प्यार दिखाना..

धीरे धीरे जब वो भी तुम्हारे प्यार को महसूस करेगी
तब.. थोड़ा आगे बढ़ेगी
डर कर कभी,
पीछे भी हटेगी..

उस वक्त तुम कोई जल्दबाज़ी मत दिखाना
उसे छूने के लिए हाथ तो बिल्कुल मत बढ़ाना..
तुम बस..दूर से ही प्यार दिखाना

ग़ौर से देखना कभी…. उसकी आँखों को
वो भी एक टक तुमको देख रही होगी..
पास आना चाहती होगी
पर थोड़ा डर रही होगी..

डर..
बीती बातों का
बीती यादों का
जब वो कहीं फँसी होगी
हाँ.. शायद करके यकीन किसी के प्यार पर
वो किसी पिंजरे किसी जाल में फँसी होगी

फिर करके हिम्मत,
वहाँ से उड़ कर बची होगी..
शायद..किसी पिंजरे किसी जाल में कभी फँसी होगी

ऐसे में तुम थोड़ा सब्र रखना
अपने प्यार पर अभिमान,
और उसके डर पर रोष ना करना..

अगर अब तलक, वो तुम्हारी मुंडेर पर बैठी है..
तो ये जान लो..
कि चाहत तो उसे भी है
बस.. पंखों के नीचे छुपे कुछ घावों को
वो सीने से लगा बैठी है..

Written & Recited By – Ritu Agarwal
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