Naye Baras Ki Pehli

नये बरस की पहली घड़ी हैं,
उम्मीद की नाव किनारे आने लगी हैं,
मन से एक दुआ निकली हैं,
यह धरती जो हम को मिली हैं।
या रब अब तो रहमत का साया कर दे,
के ये धूप में बहोत जली हैं।

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