नेशनल हाईवे-44 के पास पेद्दाकुंता थांडा गांव है जहां सिर्फ विधवाए रहती
है। आप सोच रहे होंगे की इस गांव में केवल विधवाएं ही क्यों है। इस गांव
को विधवाओ का गांव बनाया है नेशनल हाईवे-44 ने। जनवरी 2006 में इस हाईवे
के शुरू होने के बाद इस हाईवे पर मौतों का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ की 9 साल
में तक़रीबन 70 से 80 पुरुषो की मौत हो चुकी है, जिसमे मरने वाले पुरुष 25
से 30 केवल पेद्दाकुंता थांडा गांव के हैं और बाकी आस-पास के गांवों से।
नेशनल हाईवे-44 बनने के बाद गांव वालो को लगा की यह उनके लिए विकास का
रास्ता बन रहा है मगर उन्हें क्या पता था की यह उनकी बर्बादी है। यह
नेशनल हाईवे एक ऐसे यमराज की तरह है जो कब किस की जान ले लें कोई सोच भी
नही सकता। आलम यह है की इस गांव में एक भी पुरुष नहीं बचा चारो तरफ नज़र
घुमाने पर सिर्फ विधवाए नज़र अति है।
गांव की विधवाओं की उम्र 25 से 40 के बीच है और उनकी सुरक्षा के नाम पर
गांव में सिर्फ एक पुरुष है वो भी एक 6 साल का बच्चा। सरकार ने विधवाओं
के लिए पेंशन देने का फैसला किया है। लेकिन पेंशन लेने के लिए इन विधवाओं
को इसी जानलेवा हाईवे से गुज़ारना पड़ता है। फ़िलहाल इस हाईवे के किनारे खड़ी
होकर विधवाए अपनी किस्मत पर रोती है।
है। आप सोच रहे होंगे की इस गांव में केवल विधवाएं ही क्यों है। इस गांव
को विधवाओ का गांव बनाया है नेशनल हाईवे-44 ने। जनवरी 2006 में इस हाईवे
के शुरू होने के बाद इस हाईवे पर मौतों का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ की 9 साल
में तक़रीबन 70 से 80 पुरुषो की मौत हो चुकी है, जिसमे मरने वाले पुरुष 25
से 30 केवल पेद्दाकुंता थांडा गांव के हैं और बाकी आस-पास के गांवों से।
नेशनल हाईवे-44 बनने के बाद गांव वालो को लगा की यह उनके लिए विकास का
रास्ता बन रहा है मगर उन्हें क्या पता था की यह उनकी बर्बादी है। यह
नेशनल हाईवे एक ऐसे यमराज की तरह है जो कब किस की जान ले लें कोई सोच भी
नही सकता। आलम यह है की इस गांव में एक भी पुरुष नहीं बचा चारो तरफ नज़र
घुमाने पर सिर्फ विधवाए नज़र अति है।
गांव की विधवाओं की उम्र 25 से 40 के बीच है और उनकी सुरक्षा के नाम पर
गांव में सिर्फ एक पुरुष है वो भी एक 6 साल का बच्चा। सरकार ने विधवाओं
के लिए पेंशन देने का फैसला किया है। लेकिन पेंशन लेने के लिए इन विधवाओं
को इसी जानलेवा हाईवे से गुज़ारना पड़ता है। फ़िलहाल इस हाईवे के किनारे खड़ी
होकर विधवाए अपनी किस्मत पर रोती है।