जिस तरह वसंत में कोयल का मधुर राग बढ़ा देता है विरहणी के मन में
पिया मिलन की आस उसी प्रेम अगन को जगा रहा है आज तेरा प्यार तुम आए हो
जीवन में बनके बहार
Chehre pe mere zulf ko bikhraao kisi din, Barsaat ka mausam hai
chale aao kisi din.
इस भीगे भीगे मौसम में थी आस तुम्हारे आने की,
तुमको अगर फुर्सत ही नहीं तो आग लगे बरसातों को।
ख़ुद को इतना भी न बचाया कर,
बारिशें हुआ करे तो भीग जाया कर।
कल रात मैंने सारे ग़म आसमान को सुना दिए,
आज मैं चुप हूँ और आसमान बरस रहा है।
जब भी होगी पहली बारिश, तुमको सामने पायेंगे,
वो बूंदों से भरा चेहरा तुम्हारा हम देख तो पायेंगे।
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है,
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाईयों की।
तपिश और बढ़ गई इन चंद बूंदों के बाद,
काले सियाह बादलो ने भी बस यूँ ही बहलाया मुझे।
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