Are oh Baadal – Poetry By Ritu Agarwal

अरे ओ बादल ….

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कई दिनों से देख रही हूँ..
तुमनें अपना रुख़ कुछ बदल सा लिया है ..
इस तरफ आते तो हो,
पर मिलकर नहीं जाते ..
सामने से ऐसे निकल जाते हो,
जैसे हमसे कोई वास्ता ही नहीं ..

लगता है .. अब कोई और तुम्हें ज्यादा शिद्दत से बुलाता है ..
तभी तो.. अब यहाँ रुकते नहीं ..
दो पल के लिए ही सही,
अपने प्यार से मुझे भिगाते नहीं

जानती हूँ .. बहुत व्यस्त हो, मुसाफिर हो..
पूरे देश दुनिया का भ्रमण तुम्हें करना है ..
और तुम्हारे चाहने वालों की भी तो कमी नहीं ..
पर अगर, थोड़ा यहाँ भी रुक जाते,
मुझको भी गले लगा जाते,
तो अच्छा लगता ..

कभी लगता है,
तुम्हारी नियत पर, तुम्हारे प्यार पर,
शक़ ना करूँ ..

अगर तुम यूँ जा रहे हो,
तो ज़रूर.. कुछ ज़रूरी होगा..
कोई अपने ग़म को, अपनी ख़ुशी को,
तुमसे बाँटना चाहता होगा..
या फिर..
कोई अपने आँसुओं को,
तो कोई अपने बदन से लिपटी मिट्टी को,
तुमसे लिपट कर, धो देना चाहता होगा..

चलो कोई नहीं ..
इंतज़ार कर रही हूँ..
कभी तो फिर से आओगे..

अरे ओ बादल ..

आज सामने से निकल गये तो क्या
शायद कल रुक जाओगे..

अरे ओ बादल..
मुझे पूरी उम्मीद है,
तुम कल फिर से आओगे..

 

Written & Recited By – Ritu Agarwal
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