KYA KAROGE GHAZAL
दिल ही जो खुश नहीँ तो नजारोँ का क्या करोगे। जो फिज़ा मेँ जिन्दगी हो, तो बहारोँ का क्या करोगे॥
मुकम्मल करोगे कैसे तमन्ना हजार दिल की। जो एक नहीँ होती, हजारोँ का क्या करोगे॥
कोई गुलाब तुमको आ जाए गर पसन्द भी। लिपटे हैँ उसके साथ उन काँटो का क्या करोगे॥
ज़माने से अब ये कह दो, आशिक नहीँ रहा वो। अब तो गिरा दो इनको, दिवारोँ का क्या करोगे॥
उल्फत मेँ वो तो उनकी, तारे भी तोङ लाएँ। कोई मगर ये पूछे, के तारोँ का क्या करोगे॥
जब हौसला नहीँ था, समंदर मेँ तुम क्यूं उतरे। कश्ती है तलातुम मेँ, तो किनारोँ का क्या करोगे॥॥
-RAMNIVAS BISHNOI